सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर चिंता व्यक्त की , वकीलों को ऑनलाइन हाजिरी देने का निर्देश दिया।
दिल्ली में वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति ने राष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए कहा कि शहरी हवा की गुणवत्ता इतनी खराब है कि यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। इस संदर्भ में शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ वकीलों से आग्रह किया कि वे वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई में भाग लें। अदालत ने स्पष्ट किया कि मास्क पहनना पर्याप्त नहीं है और शारीरिक रूप से हाजिरी देना आवश्यक नहीं है , जब कि तकनीकी सुविधाएं मौजूद हैं।
सुप्रीम कोर्ट के जज पीएस नरसिम्हा ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा , ” आप सभी क्यों यहां उपस्थित हुए हैं ? हम सभी के पास ऑनलाइन सुनवाई की व्यवस्था उपलब्ध है। कृपया इसका सदुपयोग करें। “ उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण से गंभीर स्वास्थ्य खतरे हैं , जो दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। जस्टिस नरसिम्हा ने यह भी कहा कि सिर्फ मास्क पहनना पर्याप्त नहीं है , बल्कि इस समस्या का स्थायी समाधान आवश्यक है।
यह टिप्पणी तब की गई जब दिल्ली में घने धुंध और प्रदूषण का स्तर अपने चरम पर था। गुरुवार सुबह राजधानी पूरी तरह से धुंध की चादर में लिपटी हुई थी , जिससे न केवल दृश्यता प्रभावित हुई , बल्कि सांस लेना भी कठिन हो गया। विशेषज्ञों का मानना है कि वायु गुणवत्ता का यह स्तर स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है , खासकर अस्वस्थ व्यक्तियों , बच्चों और बुजुर्गों के लिए।
दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद चिंताजनक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार , सुबह आठ बजे तक बवाना में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 460 पहुंच गया , जो ‘ गंभीर ‘ श्रेणी में आता है। वहीं , द्वारका में AQI 216 दर्ज किया गया , जो ‘ सामान्य ‘ से ऊपर है।
अन्य प्रमुख इलाकों का औसत AQI इस प्रकार रहा : आनंद विहार (431) , चांदनी चौक (455) , अशोक विहार (348) , नॉर्थ कैंपस दिल्ली विश्वविद्यालय (414) , द्वारका सेक्टर-8 (400) , आईटीओ (438) , मुंडका (438) , नरेला (432) , और रोहिणी (447)। इन आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली की हवा का स्तर बहुत खराब है , और यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
यह स्थिति इसलिए और भी गंभीर हो जाती है क्योंकि पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाएँ दिल्ली की हवा को और खराब कर रही हैं। पराली जलाने से निकलने वाले धुएं और धूल से वायु गुणवत्ता और गिर जाती है , जिससे सांस लेने में कठिनाई का अनुभव होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस स्थिति को तत्काल नियंत्रित नहीं किया गया , तो इसके दीर्घकालिक प्रभाव हो सकते हैं , जिनमें फेफड़ों के रोग , हृदय संबंधी समस्याएँ और अन्य स्वास्थ्य जटिलताएँ शामिल हैं।
गंभीर वायु प्रदूषण न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरा है , बल्कि यह पर्यावरणीय संकट भी है। सांस लेने में कठिनाई , आंखों में जलन , सिरदर्द और थकान जैसे लक्षण आम हो गए हैं। ये स्थिति बच्चों , बुजुर्गों और हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए और भी खतरनाक साबित हो रही है।
सरकारें और संबंधित एजेंसियां वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए कदम उठा रही हैं , लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि प्रदूषण नियंत्रण के लिए स्थायी उपाय जरूरी हैं। अदालत ने यह भी संकेत दिया है कि विशेषज्ञों और अधिकारियों के साथ बैठक कर दीर्घकालिक रणनीति विकसित की जाएगी।
दिल्ली में वायु प्रदूषण का यह संकट एक चेतावनी है कि यदि अभी कार्रवाई नहीं की गई , तो आने वाले समय में इससे होने वाले नुकसान अत्यधिक हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश और चेतावनी इस बात का संकेत है कि सभी संबंधित पक्षों को जिम्मेदारी से कदम उठाने होंगे। साथ ही , नागरिकों को भी चाहिए कि वे अपनी सुरक्षा के लिए मास्क का प्रयोग करें और प्रदूषण नियंत्रण में सरकार का सहयोग करें।
यह स्थिति गंभीर है , और इसे हल करने के लिए तत्काल , समुचित और दीर्घकालिक प्रयासों की आवश्यकता है। सरकारें , अदालतें , और नागरिक सभी मिलकर इस संकट का सामना कर सकते हैं। – Report by : वंशिका माहेश्वरी



