दिवाली पार्टी में 100% उपस्थिति अनिवार्य, 1200 रुपये का भुगतान भी जरूरी; कंपनी का आदेश सोशल मीडिया पर वायरल
इस खबर ने सोशल मीडिया, खासतौर पर Reddit पर जबरदस्त हलचल मचा दी है। कंपनी द्वारा कर्मचारियों से दिवाली पार्टी के लिए पैसे मांगने और 100% उपस्थिति अनिवार्य करने का फरमान चर्चा का विषय बन गया है। यह मामला इसलिए भी खास है क्योंकि इसमें दोनों ही बातें—पैसे देने और उपस्थिति का नियम—एक साथ जुड़कर कर्मचारियों के प्रति कंपनी की सोच पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
सबसे पहले, कंपनी का यह फरमान सार्वजनिक रूप से एक व्हाट्सएप स्क्रीनशॉट के जरिए वायरल हुआ है, जिसमें साफ तौर पर लिखा है कि कर्मचारियों को दिवाली पार्टी के लिए 1200 रुपये और मैनेजर्स को 2000 रुपये देने होंगे। साथ ही, यह भी कहा गया है कि हर कर्मचारी की 100% उपस्थिति अनिवार्य है। इस पोस्ट का कैप्शन और इसमें शामिल हैशटैग—जिसमें शराब ‘ऑन द हाउस’ होने का जिक्र है—से यह संकेत मिलता है कि कंपनी इस कार्यक्रम को लेकर कितनी गंभीर है और इसकी योजना कितनी भव्य है।
कंपनी का क्या कहना था?
कंपनी ने अपने संदेश में अपनी योजना का खुलासा इस अंदाज में किया कि यह एक सामान्य कर्मचारी सभा नहीं बल्कि एक बड़े आयोजन की तैयारी है। कंपनी ने कहा कि सभी कर्मचारियों की टीम में पूरे 100% उपस्थिति जरूरी है, और इसके लिए हर कर्मचारी से 1200 रुपये वसूलने का निर्देश दिया गया है। मैनेजर्स के लिए यह फीस 2000 रुपये तय की गई है। इस संदेश में यह भी उल्लेख किया गया है कि यह पैसा पार्टी के खर्च के लिए है, और यह भी कि शराब ‘ऑन द हाउस’ होगी। इस पोस्ट में यह भी कहा गया है कि सभी कर्मचारियों को यह राशि देना जरूरी है, और यदि कोई इसमें भाग नहीं लेना चाहता या भुगतान करने से इनकार करता है, तो उसके परिणाम क्या होंगे, इस पर कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएँ
यह खबर जैसे ही Reddit पर आई, वैसे ही यूजर्स की प्रतिक्रियाओं का तूफान शुरू हो गया। कई यूजर्स ने इस कदम की निंदा की और इसे कर्मचारी विरोधी बताया। एक यूजर ने कहा कि यह अत्यंत शर्मनाक है कि कंपनी अपने कर्मचारियों से न केवल मेहनत का मेहनताना मांग रही है, बल्कि पार्टी के खर्च के लिए भी पैसे ले रही है। खासतौर पर जब बात दिवाली जैसे त्योहार की हो, तो यह उम्मीद की जाती है कि कंपनियां अपने कर्मचारियों के साथ मिलकर खुशियों का जश्न मनाएं, न कि उनसे आर्थिक बोझ डालें।
दूसरे यूजर्स ने इस कदम को पूरी तरह से अनुचित माना। उनका तर्क था कि यह प्रथा कर्मचारियों का मनोबल गिराने वाली है। एक यूजर ने कहा कि यदि कंपनी को अपने कार्यक्रम के लिए पैसे चाहिए ही, तो वह अपने बजट से खर्च क्यों नहीं करती? कर्मचारियों से पैसा वसूलना यह दिखाता है कि कंपनी कर्मचारियों की परवाह नहीं करती और अपने कार्यक्रम को लेकर गंभीर नहीं है।
प्रोफेशनल माहौल और सोशल मीडिया का प्रयोग
कई यूजर्स ने व्हाट्सएप का इस्तेमाल इस प्रकार के आधिकारिक सूचना के लिए करना उचित नहीं माना। उनका तर्क था कि व्हाट्सएप जैसे मैसेजिंग प्लेटफॉर्म आमतौर पर व्यक्तिगत संवाद के लिए होते हैं, न कि ऑफिसियल नोटिस के लिए। उन्होंने कहा कि इससे प्रोफेशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ के बीच की स्पष्ट सीमा धुंधली हो जाती है। कुछ यूजर्स ने यह भी कहा कि यदि कंपनी इस तरह का कदम उठाती है, तो इससे पता चलता है कि वह अपने कर्मचारियों की परवाह नहीं करती और उनका सम्मान नहीं करती।
उपस्थिति और भागीदारी पर सवाल
इस पूरे प्रकरण में एक बड़ा सवाल यह भी उठ खड़ा हुआ कि यदि भागीदारी अनिवार्य है और पैसा भी देना पड़ रहा है, तो यह कार्यक्रम वास्तव में वैकल्पिक क्यों नहीं है? यदि कोई कर्मचारी इस भुगतान से इनकार करता है या इसमें भाग नहीं लेना चाहता, तो क्या उसका नुकसान होगा? क्या उसे कार्यस्थल से बाहर कर दिया जाएगा? इन सवालों ने कर्मचारियों के बीच असंतोष को और बढ़ा दिया है।
यह मामला इस बात को उजागर करता है कि आज के समय में कंपनियों का कर्मचारियों के प्रति रवैया कैसा है। जब एक कंपनी त्योहारों के मौके पर भी कर्मचारियों से पैसे मांगती है और 100% उपस्थिति अनिवार्य कर देती है, तो यह निश्चित ही कर्मचारी मनोबल को गिराने वाली बात है। इससे पता चलता है कि कहीं न कहीं कंपनी अपने कर्मचारियों को केवल काम करने वाला मानने लगी है, न कि उनके साथ खुशियां मनाने वाला। सामाजिक प्रतिक्रिया में अधिकांश यूजर्स ने इस कदम की आलोचना की है और कहा है कि कर्मचारियों का सम्मान और उनके अधिकारों का सम्मान करना व्यवसाय का मूल सिद्धांत होना चाहिए। इस घटना से यह भी सीख मिलती है कि कंपनियों को अपने कर्मचारियों के साथ पारदर्शिता और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए, न कि जबरदस्ती या आर्थिक दबाव डालकर।
यह मामला इस बात का प्रतीक है कि आधुनिक कार्यस्थल में पारदर्शिता, सम्मान और कर्मचारी कल्याण कितने महत्वपूर्ण हैं। यदि कंपनियां अपने कर्मचारियों के प्रति जिम्मेदारी दिखाएंगी और त्योहारों का आनंद साझा करने के अवसर को बढ़ावा देंगी, तो इससे न केवल कर्मचारियों का मनोबल बढ़ेगा, बल्कि कार्यस्थल का माहौल भी सकारात्मक रहेगा। लेकिन यदि इसके विपरीत, कर्मचारी पर आर्थिक बोझ डालकर और अनावश्यक नियम लागू कर व्यवसाय अपनी छवि को नुकसान पहुंचाएगा, तो इसका खामियाजा अंततः कंपनी को ही भुगतना पड़ेगा।



