ग्वालियर के गोपाल मंदिर की कहानी

ग्वालियर : जन्माष्टमी के पावन पर्व पर पूरा देश कृष्ण की भक्ति के रंग में रंगा हुआ है. इस मौके पर ग्वालियर शहर के फूलबाग स्थित प्राचीन “गोपाल मंदिर” की अपनी खास अहमियत है क्योंकि यहां जन्माष्टमी के दिन भगवान राधा-कृष्ण की मूर्तियों का फूल-मालाओं से नहीं बल्कि बेशकीमती आभूषणों से विशेष श्रृंगार किया जाता है. .इन बेशकीमती आभूषणों की कीमत वर्तमान में 100 करोड रुपए से अधिक की बताई जाती है. इसमें सिंधिया रियासत काल के हीरे जवाहरातों से जड़ित स्वर्ण मुकुट, पन्ना और सोने की सात लड़ी का हार, 249 मोतियों की माला, ,हीरे जड़े हुए कंगन, सोने की बांसुरी और चांदी का विशाल छत्र शामिल है. ऐसा अनुमान है कि जन्माष्टमी के दिन इस मंदिर में एक लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचेंगे. क्या है ये परंपरा और कैसे इसका पालन होता है जानिए इस रिपोर्ट में गोपाल मंदिर में जन्माष्टमी के दिन राधाकृष्ण का खजाना खोला जाता है. मंदिर की सबसे बड़ी विशेष बात ये है कि जन्माष्टमी के दिन यहां विराजमान राधाकृष्ण का श्रृंगार रत्न जड़ित आभूषणों से किया जाता है. इनकी कीमत 100 करोड़ से भी अधिक होती है.100 करोड़ से भी अधिक कीमत के रत्न जड़ित आभूषण धारण करके भगवान अपने भक्तों को दर्शन देते हैं. चूंकि ये आभूषण बेशकीमती हैं इसलिए पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच साल में सिर्फ जन्माष्टमी के दिन ही नगर निगम द्वारा बनाई गई कमेटी की देखरेख में इनको बैंक के लॉकर से निकाला जाता है. इस बार 16 अगस्त यानि जन्माष्टमी के दिन भी सुबह 10 बजे सेंट्रल बैंक के लॉकर से इन बहुमूल्य आभूषणों को कड़ी सुरक्षा के बीच गोपाल मंदिर लाया गया और वीडियो ग्राफी के साथ भगवान का श्रृंगार किया गया .. इस मंदिर में सिंधिया शाशकों ने भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के लिए अनमोल रत्नों से बने गहने भेंट किए थे. जो आभूषण मंदिर भंडार में भेंट गए थे, उनमें हीरे, पन्ना, मोती, माणिक, नीलम और सोने की बारीक नक्काशी शामिल है. मंदिर ट्रस्ट से जुड़े लोगों के मुताबिक, भगवान के आभूषण के खजाने में हीरे जवाहरातों से जड़ित सोने का मुकुट, सात लड़ी का हार (पन्ना और सोने का), 249 मोतियों की माला, हीरे जड़े हुए कंगन, सोने की बांसुरी, चांदी का विशाल छत्र और अन्य छोटे आभूषण सिंधिया रियासत काल के हैं.इसके बाद रात को करीब 1 से 2 बजे के बीच वापस इन आभूषणों को कड़ी सुरक्षा के बीच लॉकर में जमा कर दिया जाएगा. इस दौरान पूरे मंदिर परिसर में लगभग 500 से अधिक पुलिस के जवान और अधिकारी सुरक्षा में तैनात रहते हैं. साथ ही पूरे मंदिर परिसर की CCTV से भी निगरानी की जाएगी. जन्माष्टमी के दिन लगभग दोपहर लगभग 12 बजे राधा कृष्ण के श्रृंगार के बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के पट खोल दिए जाते है अहम बात ये है कि इस ऐतिहासिक गोपाल मंदिर के भवन को संरक्षित रखने के लिए नगर निगम ने प्रोजेक्ट भी तैयार किया है. जिस पर जन्माष्टमी के बाद काम शुरू किया जाएगा.मंदिर प्रबंधन का कहना है कि साल में सिर्फ एक ही बार इन बहुमूल्य आभूषणों से भगवान का श्रृंगार होता है. यहां आपको बता दें कि ग्वालियर में इस ऐतिहासिक गोपाल मंदिर का निर्माण सिंधिया राजवंश के तत्कालीन महाराजा माधव राव प्रथम ने वर्ष 1921 में करवाया था. उसी दौरान रियासत ने भगवान के श्रंगार के लिए बहुमूल्य आभूषण बनवाए थे. देश आजाद होने से पहले तक भगवान श्री राधा-कृष्ण यहां ये आभूषण हमेशा धारण किए हुए रहते थे. आजादी के बाद सुरक्षा कारणों से इन्हें बैंक के लॉकर में सुरक्षित रखवा दिया गया था. हलांकि साल 2007 में तत्कालिन मेयर विवेक नारायण शेजवलकर के प्रयासों से यह बहुमूल्य आभूषण नगर निगम की देखरेख में आए और तब से लेकर आज तक हर साल जन्माष्टमी पर इन आभूषणों को बैंक से निकाल कर श्री राधा रानी और कृष्ण जी का श्रृंगार किया जाता रहा है.