उत्तराखंड हर्षिल घाटी में 7 लाख क्यूबिक मीटर पानी से बना ‘वॉटर बम’, सेना कर रही तैयारी

नई दिल्ली : उत्तराखंड के हर्षिल घाटी में आसमान के बादल नहीं, बल्कि धरती पर जमा पानी अब खतरा बन गया है। भागीरथी नदी पर मलबा और पत्थरों के जमाव से बनी करीब 1200 मीटर लंबी और 100 मीटर चौड़ी कृत्रिम झील को विशेषज्ञ ‘वॉटर बम’ कह रहे हैं। यह झील लगभग 20 फीट गहरी है और इसमें करीब 7 लाख क्यूबिक मीटर पानी जमा हो चुका है। अगर यह टूट गई, तो निचले इलाकों में भारी तबाही मच सकती है।
बादल फटने से बनी खतरनाक झील
हाल ही में हुई भीषण बारिश और बादल फटने के बाद, धाराली और हर्षिल के बीच भागीरथी नदी में मलबा भर गया। खासतौर पर खीर गाड़ और भागीरथी नदी के संगम पर जमा मलबे ने नदी का प्राकृतिक बहाव रोक दिया। उपग्रह तस्वीरों में पंखे के आकार का मलबा साफ नजर आ रहा है, जिसने पानी को रोककर झील बना दी है।
हर्षिल हेलिपैड और गंगोत्री रोड पर पानी
झील का पानी अब हर्षिल हेलिपैड तक पहुंच गया है और गंगोत्री रोड के कई हिस्से डूब चुके हैं। अगर पानी का स्तर और बढ़ा या झील का किनारा अचानक टूट गया, तो निचले इलाकों में बाढ़ का सैलाब उतर आएगा।
सेना का ‘पंक्चर प्लान’
खतरे को देखते हुए प्रशासन ने सेना को बुलाया है। आर्मी इंजीनियरिंग कोर झील में नियंत्रित तरीके से पानी निकालने का मार्ग बनाएगी ताकि अचानक बाढ़ का खतरा कम किया जा सके। टीम मौके का सर्वे कर रही है और तय कर रही है कि किस तरह से झील को सुरक्षित तरीके से “पंक्चर” किया जाए।
विशेषज्ञों की चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर झील में जमा पानी एक साथ बह निकला, तो यह कुछ ही मिनटों में निचले इलाकों में तबाही मचा सकता है, घरों और सड़कों को बहा ले जाएगा और पुल व अन्य ढांचे भी नष्ट हो सकते हैं।
क्यों कहा जा रहा है ‘वॉटर बम’?
यह कृत्रिम झील स्थायी नहीं है और इसका किनारा मलबे व पत्थरों से बना है, जो पानी के दबाव में कभी भी टूट सकता है। इसी वजह से इसे ‘वॉटर बम’ कहा जा रहा है। हिमालयी क्षेत्रों में पहले भी इस तरह की झीलें फूटने से बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है।
लोगों में दहशत का माहौल
हर्षिल घाटी और आसपास के गांवों में लोग डर के साए में हैं। कई परिवार घर खाली करने की तैयारी कर चुके हैं। सभी की नजर अब सेना और इंजीनियरिंग टीम के बचाव अभियान पर टिकी है, जो इस ‘वॉटर बम’ को सुरक्षित तरीके से खाली करने की कोशिश में जुटी है।