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भारत-अमेरिका रिश्तों में दरार: ट्रंप के टैरिफ फैसले से बदला समीकरण

 भारत-अमेरिका रिश्तों में दरार: ट्रंप के टैरिफ फैसले से बदला समीकरण
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INTERNATIONAL : भारत और अमेरिका के रिश्तों में बीते दो वर्षों में जबरदस्त बदलाव आया है। सिर्फ दो साल पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वॉशिंगटन डीसी में गर्मजोशी से स्वागत हुआ था, तब भारत को अमेरिका का सबसे भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार माना जा रहा था।

व्हाइट हाउस से रेड कार्पेट हटा?

2023 में अमेरिकी संसद में मोदी का भाषण तालियों की गूंज से गूंज उठा था। लेकिन 2025 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% तक टैरिफ़ लगाने का ऐलान कर दिया। ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि भारत अब भी रूसी तेल का आयात कर रहा है और इससे अमेरिका की रूस को अलग-थलग करने की रणनीति कमजोर हो रही है। ट्रंप का यह कदम ट्रेड वार की शुरुआत हो सकता है, जिससे भारत का अमेरिका को निर्यात 40–50% तक घट सकता है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) और FIEO जैसे संगठनों ने इस फैसले को ‘चौंकाने वाला’ बताया है।

क्या भारत अमेरिका से दूर हो जाएगा?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति अमेरिका के लिए उलटी पड़ सकती है। चीन के राजनीतिक विश्लेषक प्रो. हुआंग हुआ का कहना है, “भारत को नुकसान होगा, लेकिन अमेरिका को ज्यादा।” उनका मानना है कि भारत और चीन मिलकर अमेरिका के दबाव का सामना करने की रणनीति अपना सकते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी का संभावित चीन दौरा इस बदलते समीकरण का संकेत हो सकता है।

पाकिस्तान से अमेरिका की नज़दीकियां

इस टैरिफ विवाद के बीच एक और बात भारत को असहज कर सकती है। अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बढ़ती नज़दीकियां। पूर्व राजनयिक शरद सभरवाल का कहना है कि अमेरिका पाकिस्तान से “लेन-देन” वाला रिश्ता बनाता जा रहा है। इसमें क्रिप्टो निवेश और तेल खोज जैसे विषयों की चर्चा हो रही है।

भारत की संतुलित प्रतिक्रिया

भारत ने अमेरिकी टैरिफ को ‘अनुचित और बेबुनियाद’ बताया है। विदेश मंत्रालय ने दोहराया कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा। GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने धैर्य और शांत प्रतिक्रिया की सलाह दी है। उन्होंने कहा, “अमेरिका के साथ सार्थक बातचीत तभी हो सकती है, जब दोनों पक्षों में विश्वास बना रहे।”

क्या अभी भी बातचीत की संभावना है?

पूर्व राजनयिक सभरवाल का कहना है कि भारत को बातचीत का रास्ता खुला रखना चाहिए। ट्रंप ने पहले भी कई फैसले बदले हैं। हो सकता है कि यह टैरिफ फैसला एक सौदेबाज़ी की रणनीति हो।

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, तकनीक, शिक्षा और खुफिया साझेदारी अब भी मज़बूत है। लेकिन अगर ट्रंप व्यापार को हथियार बनाते हैं, तो भारत को एक स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति की ओर बढ़ना होगा। फिलहाल गेंद ट्रंप के पाले में है — अब देखना ये है कि वे भारत को साझेदार बनाए रखते हैं या प्रतिद्वंद्वी बना देते हैं।

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