जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका खारिज, कैश कांड की जांच को सही ठहराया

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत ने जस्टिस यशवंत वर्मा को एक बड़ा झटका दिया है। कैश कांड से जुड़े मामले में दायर उनकी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। वर्मा ने अपनी याचिका में इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट और तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना द्वारा उनके स्थानांतरण और हटाने की सिफारिश को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ, जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह शामिल थे, ने कहा कि, “जस्टिस वर्मा का आचरण ऐसा नहीं है जो सार्वजनिक विश्वास पैदा करे। जांच समिति ने तय प्रक्रिया का पालन किया, इसलिए याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।” पीठ ने साफ किया कि इन-हाउस समिति का गठन और जांच पूरी तरह वैध और प्रक्रिया-सम्मत रही। केवल फोटो और वीडियो अपलोड नहीं किए गए थे, लेकिन वह अनिवार्य नहीं था और इसे पहले ही स्पष्ट कर दिया गया था।
तत्कालीन CJI का पत्र भी वैध: सुप्रीम कोर्ट
वर्मा की याचिका में तत्कालीन CJI संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे गए पत्र को भी चुनौती दी गई थी, लेकिन अदालत ने इसे संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सही ठहराया।
क्या है पूरा मामला?
- 14 मार्च 2025 की रात: दिल्ली के पॉश इलाके लुटियंस में स्थित जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई।
- उस वक्त जस्टिस वर्मा घर पर नहीं थे। उनके परिजनों ने फायर ब्रिगेड को बुलाया।
- आग बुझाते समय मीडिया में खबरें चलीं कि बंगले के अंदर भारी मात्रा में कैश देखा गया।
इस खबर के बाद मामला तेजी से राजनीतिक और न्यायिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया।
जांच और स्थानांतरण का प्रस्ताव
- 20 मार्च 2025 को तत्कालीन CJI ने कोलेजियम की आपात बैठक बुलाई।
- बैठक में जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को जांच सौंपने का निर्णय हुआ।
- जांच रिपोर्ट में कुछ गंभीर टिप्पणियां थीं, जिनके आधार पर उनके तबादले की सिफारिश की गई।
दिल्ली फायर ब्रिगेड का बयान
मामले में नया मोड़ तब आया जब दिल्ली फायर ब्रिगेड चीफ अतुल गर्ग ने बयान जारी कर कहा, “हमारी टीम को आग बुझाते समय कोई नकदी नहीं मिली।” हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस बयान को अदालती रिकॉर्ड और जांच रिपोर्ट से मेल न खाने वाला माना।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला जांच प्रक्रिया और न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता को मजबूत करता है। अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि कोई भी न्यायाधीश सार्वजनिक भरोसे से ऊपर नहीं है। अब देखना यह होगा कि जस्टिस वर्मा आगे कानूनी कदम उठाते हैं या नहीं।
