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मऊ उपचुनाव 2025: क्या बीजेपी अंसारी परिवार के गढ़ को जीत पाएगी?

 मऊ उपचुनाव 2025: क्या बीजेपी अंसारी परिवार के गढ़ को जीत पाएगी?
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उत्तर प्रदेश : उत्तर प्रदेश की मऊ सदर विधानसभा सीट, जिसे कभी भी बीजेपी नहीं जीत सकी, अब एक बार फिर राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गई है। वजह है – अब्बास अंसारी की सदस्यता रद्द होना और संभावित उपचुनाव। मुख्तार अंसारी ने इस सीट को 1996 से अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया और लगातार पांच बार विधायक रहे। बसपा से लेकर निर्दलीय और कौमी एकता दल तक, उन्होंने हर बार बाज़ी मारी। 2022 में उनकी विरासत बेटे अब्बास अंसारी को मिली, जो सुभासपा-सपा गठबंधन से विधायक बने। लेकिन भड़काऊ भाषण केस में दो साल की सजा के बाद उनकी सदस्यता रद्द हो गई, और सीट खाली हो गई।

बीजेपी का सियासी सपना कमल खिलाना मऊ में!

बीजेपी ने कभी मुस्लिम उम्मीदवार उतारा, कभी ठाकुर या राजभर पर दांव लगाया, लेकिन जीत नहीं मिल सकी। यहां तक कि राम मंदिर आंदोलन, मोदी लहर, और योगी की प्रशासनिक छवि भी मऊ का समीकरण नहीं बदल सकी। अब जब मऊ सीट दोबारा खाली हुई है, तो भाजपा ने तेज़ी से एक्टिव होकर सीट को रिक्त घोषित करवाया — यह दिखाता है कि इस बार पार्टी किसी तरह भी मऊ को जीतने का मौका नहीं गंवाना चाहती।

मऊ सीट का जातीय गणित

मुस्लिम मतदाता: लगभग 1.5 लाख

अनुसूचित जाति: 91,000

राजभर: 50,000

यादव: 45,000

चौहान: 45,000

ठाकुर: 20,000

ब्राह्मण: 7,000

यही वो समीकरण है, जिसकी बदौलत अंसारी परिवार को लगातार मुस्लिम, दलित और ओबीसी का समर्थन मिलता रहा। बीजेपी जब ठाकुर उम्मीदवारों के साथ चुनावी मैदान में उतरी, तब उन्हें लगातार शिकस्त का सामना करना पड़ा।

कौन उतरेगा मैदान में?

बीजेपी: इस बार खुद चुनाव लड़ेगी या सुभासपा को फिर से मौका देगी, इस पर मंथन जारी है।

सुभासपा (ओम प्रकाश राजभर): अपने मंत्रीपद और प्रभाव के बल पर बृजेश सिंह को टिकट दिलवाने की तैयारी में हैं।

सपा: अपने उम्मीदवार से सीधी टक्कर देने की रणनीति पर काम कर रही है।

बसपा और कांग्रेस: इस उपचुनाव से दूर ही रहने की संभावना है।

क्या बदल पाएगी तस्वीर?

बड़ा सवाल यही है: क्या बीजेपी मऊ में कमल खिला पाएगी? या फिर अंसारी परिवार के समर्थन से विपक्ष एक बार फिर बीजेपी की जीत की राह में दीवार खड़ी कर देगा?

इस उपचुनाव का असर सिर्फ मऊ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि 2025 विधानसभा चुनाव के राजनीतिक समीकरणों की दिशा तय करेगा।

मऊ सीट, सिर्फ एक उपचुनाव नहीं है, बल्कि ये उत्तर प्रदेश की राजनीति का माइक्रोस्कोपिक व्यू है — जहां हर जातीय गणना, सियासी रणनीति और बयानों का पलड़ा भारी पड़ सकता है।

– अगर बीजेपी मऊ में जीत जाती है, तो ये दशकों पुराना सियासी रिकॉर्ड तोड़ने जैसा होगा।
– और अगर विपक्ष ने दोबारा सीट बचा ली, तो ये संकेत होगा कि अंसारी परिवार का किला अभी भी मजबूत है।

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