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गुजरात: महिसागर नदी पर गांभीरा ब्रिज से लटका 2 टन रासायनिक टैंकर

 गुजरात: महिसागर नदी पर गांभीरा ब्रिज से लटका 2 टन रासायनिक टैंकर
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आणंद (गुजरात) : गुजरात के आणंद जिले में महिसागर नदी पर बने गांभीरा ब्रिज से लटके 12 टन के रासायनिक टैंकर को हटाने का ऑपरेशन अब अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है। यह अत्यधिक जोखिम भरा कार्य स्वदेशी तकनीकों और विशेषज्ञ टीम की मदद से किया जा रहा है, और शनिवार तक इसके पूरे होने की उम्मीद है।

हाईटेक तकनीक का इस्तेमाल: रोलर बैग और स्ट्रेन जैक से चल रहा ऑपरेशन

गंभीर खतरे को टालने और ब्रिज को संरक्षित रखने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का सहारा लिया गया है:

टैंकर को ऊपर उठाने के लिए एयर लिफ्टिंग रोलर बैग्स का उपयोग किया गया है।

स्ट्रेन जैक के ज़रिए टैंकर को ब्रिज के समतल स्तर तक लाया जा रहा है।

इसके बाद 900 मीटर लंबी स्टील केबल के माध्यम से टैंकर को ब्रिज के किनारे तक खींचा जाएगा।

विशेषज्ञों के अनुसार, यह पूरा कार्य एक जटिल इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट है, जिसे पूरी सुरक्षा और संतुलन के साथ अंजाम दिया जा रहा है।

सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम: ब्रिज पर आम नागरिकों की आवाजाही पर रोक

इस ऑपरेशन में करीब 50 विशेषज्ञ और तकनीकी स्टाफ लगातार काम कर रहे हैं।

चार ड्रोन कैमरों की मदद से पूरे ऑपरेशन की निगरानी और रिकॉर्डिंग की जा रही है।

सुरक्षा की दृष्टि से ब्रिज पर किसी भी आम व्यक्ति को जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है, ताकि किसी प्रकार की दुर्घटना से बचा जा सके।

स्वदेशी टीम, विदेशी मदद नहीं

इस पूरे ऑपरेशन की खास बात यह है कि इसमें किसी भी विदेशी इंजीनियरिंग या तकनीकी सहायता का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यह अभियान पूरी तरह भारतीय इंजीनियरों, तकनीशियनों और विशेषज्ञों के द्वारा संचालित किया जा रहा है, जो “आत्मनिर्भर भारत” की एक और बड़ी मिसाल है।

क्यों जरूरी था यह ऑपरेशन?

टैंकर में रासायनिक पदार्थ होने की वजह से अगर यह ब्रिज से गिर जाता, तो नदी प्रदूषण, जलीय जीवन को खतरा और मानव जीवन पर संकट उत्पन्न हो सकता था। साथ ही ब्रिज की संरचना को भी भारी नुकसान पहुंच सकता था, जिससे ट्रैफिक बाधित होता और संभावित हादसे हो सकते थे।

महिसागर नदी पर स्थित गांभीरा ब्रिज पर लटका हुआ यह रासायनिक टैंकर गुजरात सरकार और तकनीकी विशेषज्ञों के लिए एक बड़ी चुनौती था। लेकिन समर्पण, कौशल और आधुनिक तकनीक के साथ इस संकट को नियंत्रण में लाया गया है।

इस ऑपरेशन ने यह भी सिद्ध किया है कि भारत अब खतरनाक और जटिल तकनीकी अभियानों को भी सफलतापूर्वक अपने बलबूते पर अंजाम दे सकता है। अब यह मिशन न केवल ब्रिज की सुरक्षा, बल्कि राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बन गया है।

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