कृष्ण जन्मभूमि आंदोलन के प्रखर सेनानी: ब्रजेश तिवारी

मथुरा :देश के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलन की पृष्ठभूमि में कुछ ऐसे व्यक्तित्व उभर कर सामने आते हैं जो समय की मांग के अनुसार न केवल नेतृत्व करते हैं, बल्कि जनभावनाओं को आवाज़ भी देते हैं। ऐसे ही एक नाम हैं ब्रजेश तिवारी, जिन्हेंने हाल ही में “कृष्ण जन्मभूमि” मामले मे एक नया वाद कोर्ट मे दाखिल किया है। मथुरा की पवित्र कृष्ण जन्मभूमि के संरक्षण, पुनर्प्रतिष्ठा और हिन्दू अस्मिता की रक्षा के लिए हिन्दुओ के तरफ नई लड़ाई का शंखनाद किया है।
1967 का समझौता गलत और अवैध-वादी
बृजेश तिवारी के दावे में 1967 के समझौते को गलत बताया है साथ ही समझौते को श्रीकृष्ण जन्मभूमि की जमीन को हड़पने वाला बड़ा षड्यंत्र बताया है। इस दौरान कोर्ट को गुमराह कर किया गया था जमीन का असली मालिक श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट है जबकि समझौता श्री कृष्ण जन्मभूमि सेवा संघ द्वारा किया गया था जिसे केवल परिसर की देख रेख के लिए बनाया गया था। दावे में यह भी कहा गया है कि औरंगजेब ने कृष्ण मंदिर और गर्भगृह को क्षतिग्रस्त कर मंदिर के गुंबदों को बदलकर गोल कर दिया था, और उसे ईदगाह मस्जिदमें परिवर्तित किया गया जिसके बाद कृष्ण भक्तों की पूजा पर रोक लगा दी गई थी।
ब्रजेश तिवारी का नाम उन प्रखर वक्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं में गिना जाता है, जिन्होंने धार्मिक स्थलों की मुक्ति के लिए न केवल आवाज उठाई, बल्कि जमीन पर सक्रिय भागीदारी भी निभाई। उनकी छवि एक निर्भीक और कट्टर हिंदू विचारक की बनी है, जो किसी भी मुद्दे पर स्पष्ट और बेबाक राय रखने से पीछे नहीं हटते।
मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि से जुड़े मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में ब्रजेश तिवारी ने बार-बार यह मांग उठाई है कि जिस प्रकार अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का समाधान आया, उसी प्रकार मथुरा की पवित्र भूमि को भी उसकी मूल पहचान लौटाई जाए। वे इस विषय पर अनेक मंचों से बोल चुके हैं, याचिकाओं में हस्ताक्षर अभियान चला चुके हैं और जन-जागरण यात्राएं भी आयोजित कर चुके हैं।
