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‘पीछे के दरवाजे से NRC लाने की कोशिश’, वोटर लिस्ट की जांच पर ओवैसी और TMC ने उठाए सवाल

 ‘पीछे के दरवाजे से NRC लाने की कोशिश’, वोटर लिस्ट की जांच पर ओवैसी और TMC ने उठाए सवाल
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नई दिल्ली। चुनाव आयोग की ओर से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सियासत तेज हो गई है। विपक्षी दल इसको लेकर सवाल उठा रहे हैं। आरोप लगा रहे हैं कि सरकार पीछे के दरवाजे से NRC लाना चाहती है।

इसी क्रम में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि यह पिछले दरवाजे से एनआरसी लाने का एक भयावह कदम है। इस कैंपेन की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि इंडिया गठबंधन संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह पर इस मुद्दे को उठाएगा।

चुनाव आयोग ने पिछले सोमवार को बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य करने के निर्देश जारी किए थे, ताकि अयोग्य नामों को हटाया जा सके और सभी पात्र नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल किया जा सके।

‘अचानक क्यों शुरू किया गया कैंपेन?’

TMC सांसद ने कहा, “यह कवायद अचानक अभी क्यों की जा रही है?” उन्होंने दावा करते हुए आगे कहा, “हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि ऐसा अब क्यों किया जा रहा है?

ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि बंगाल के लिए जो ताजा सर्वे किया गया है, उसमें भाजपा को सिर्फ 46 से 49 सीटें मिलती दिख रही हैं। चीजों को बदलने के लिए आप ऐसा ही कुछ करते हैं।”

असदुद्दीन ओवैसी ने भी उठाए सवाल

इससे पहले AIMIM के चीफ और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इसको लेकर सवाल उठाए। उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, “निर्वाचन आयोग बिहार में गुप्त तरीके से एनआरसी लागू कर रहा है।

वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए अब हर नागरिक को दस्तावेजों के जरिए साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुए थे और साथ ही यह भी कि उनके माता-पिता कब और कहां पैदा हुए थे। विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार भी केवल तीन-चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं। ज्यादातार सरकारी कागजों में भारी गलतियां होती हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “बाढ़ प्रभावित सीमांचल क्षेत्र के लोग सबसे गरीब हैं; वे मुश्किल से दिन में दो बार खाना खा पाते हैं। ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना कि उनके पास अपने माता-पिता के दस्तावेज होंगे, एक क्रूर मजाक है।

इस प्रक्रिया का परिणाम यह होगा कि बिहार के गरीबों की बड़ी संख्या को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा। वोटर लिस्ट में अपना नाम भर्ती करना हर भारतीय का संवैधानिक अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में ही ऐसी मनमानी प्रक्रियाओं पर सख्त सवाल उठाए थे। चुनाव के इतने करीब इस तरह की कार्रवाई शुरू करने से लोगों का निर्वाचन आयोग पर भरोसा कमजोर हो जाएगा।”

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