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संविधान सर्वोच्च है, सरकार के खिलाफ आदेश पारित कर कोई जज स्वतंत्र नहीं हो जाता: CJI गवई

 संविधान सर्वोच्च है, सरकार के खिलाफ आदेश पारित कर कोई जज स्वतंत्र नहीं हो जाता: CJI गवई
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अमरावती (महाराष्ट्र)। भारत के चीफ जस्टिस (CJI) बी. आर. गवई  ने कहा है कि भारत का संविधान सर्वोच्च है और लोकतंत्र के तीनों अंग संविधान के तहत काम करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है, लेकिन उनकी राय में संविधान सर्वोपरि है। पिछले महीने 52वें चीफ जस्टिस के रूप में शपथ लेने वाले जस्टिस गवई अपने गृहनगर पूर्वी महाराष्ट्र के अमरावती में अपने अभिनंदन समारोह में बोल रहे थे।

लोकतंत्र का कौन सा अंग सर्वोच्च है?

CJI ने कहा कि हमेशा इस बात पर चर्चा होती है कि लोकतंत्र का कौन सा अंग सर्वोच्च है – कार्यपालिका, विधायिका या न्यायपालिका। उन्होंने कहा, ‘हालांकि कई लोग कहते और मानते हैं कि संसद सर्वोच्च है, लेकिन मेरे अनुसार भारत का संविधान सर्वोच्च है। लोकतंत्र के सभी तीनों अंग संविधान के तहत काम करते हैं।

‘मूल ढांचे’ के सिद्धांत के आधार पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय का उल्लेख करते हुए मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि संसद के पास संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं कर सकती।’

सरकार के खिलाफ आदेश पारित करने से कोई जज स्वतंत्र नहीं हो जाता

जस्टिस गवई ने कहा कि सरकार के खिलाफ आदेश पारित करने मात्र से कोई न्यायाधीश स्वतंत्र नहीं हो जाता। न्यायाधीश को हमेशा याद रखना चाहिए कि हमारा कर्तव्य है और हम नागरिकों के अधिकारों तथा संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों के संरक्षक हैं। हमारे पास केवल शक्ति नहीं है, बल्कि हम पर कर्तव्य भी डाला गया है।’

चीफ जस्टिस ने कहा कि किसी न्यायाधीश को इस बात से निर्देशित नहीं होना चाहिए कि लोग उनके फैसले के बारे में क्या कहेंगे या क्या महसूस करेंगे। हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होगा। उन्होंने कहा, लोग क्या कहेंगे, यह हमारी निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन सकता।’ अपने संबोधन के दौरान प्रधान न्यायाधीश ने अपने कुछ फैसलों का हवाला दिया।

‘बुलडोजर न्याय’ के खिलाफ अपने फैसले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आश्रय का अधिकार सर्वोच्च है। इसमें उन्होंने कहा था कि ‘the right to shelter is supreme.’ मतलब, हर किसी को रहने का अधिकार सबसे ऊपर है। किसी को भी बिना वजह बेघर नहीं किया जा सकता।

चीफ जस्टिस ने हाल ही में एक फैसले का हवाला दिया। उन्होंने संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत की बात की। उन्होंने कहा कि संसद के पास संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के मूल ढांचे को बदल नहीं सकती। उन्होंने कहा, संसद संविधान में बदलाव तो कर सकती है, लेकिन उसकी बुनियादी बातों को नहीं बदल सकती।

मुख्य न्यायाधीश ने न्यायिक तर्क में निष्पक्षता की जरूरत पर भी बात की। उन्होंने कहा, हमें स्वतंत्र रूप से सोचना होगा। लोग क्या कहेंगे, यह हमारी निर्णय लेने की प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हो सकता। हमें बिना किसी दबाव के सही फैसला लेना चाहिए।

हालांकि, सम्मान समारोह में कोई औपचारिक फैसला नहीं सुनाया गया लेकिन CJI ने अपने पुराने फैसलों और संवैधानिक मूल्यों का जिक्र करके यह साफ कर दिया कि न्यायपालिका मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

उन्होंने यह भी बताया कि कैसे वह एक आर्किटेक्ट बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता की स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी ने उन्हें कानून के क्षेत्र में ला दिया।

आखिर में CJI गवई ने कहा कि उनका न्यायिक दर्शन संविधान के पाठ और भावना पर आधारित है। उनके फैसले संविधान की व्याख्या करते हैं। उनके फैसले संविधान के अनुसार होते हैं। वह संविधान को ध्यान में रखकर ही फैसले लेते हैं।

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