क्या सेल्फ गोल कर बैठे अशोक चौधरी, नीतीश के फैसलों में कैसे होता है RSS का दखल? समझिए

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का RSS कनेक्शन कोई नई बात नहीं है। ऐसे कई मौके आए जब नीतीश कुमार ने इसे स्वीकार भी किया और कई बार उनके फैसले RSS से प्रभावित दिखे। राज्य सरकार में मंत्री अशोक चौधरी का हालिया बयान एक ऐसा ही सच है जो नीतीश कुमार की राजनीति को कठघरे में खड़ा करने के लिए काफी है।
क्या सेल्फ गोल कर बैठे अशोक चौधरी?
दरअसल, बिहार में नवगठित आयोगों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के बड़े नेताओं के दामादों को चेयरमैन, उपाध्यक्ष और सदस्य बनाने के मामले में NDA का परिवारवाद पर सवाल तो उठ ही रहे थे।
इस बीच मंत्री अशोक चौधरी का बयान तो नीतीश कुमार की सेक्युलर राजनीति पर ही सवालिया निशान लगा बैठा। एक कहावत है रक्षा में हत्या। ठीक इसी अंदाज में मंत्री अशोक चौधरी ने धार्मिक न्यास परिषद के सदस्य बने अपने दामाद सायन कुणाल की रक्षा करनी चाही लेकिन बात कहीं और से कहीं और चली गई।
क्या गलती से सच कह गए अशोक चौधरी?
एनडीए को परिवारवाद से बचाने के लिए अशोक चौधरी ने यह कह डाला कि सायन कुणाल की नियुक्ति बीजेपी या जदयू के कोटे से नहीं बल्कि RSS कोटे से हुई। चौधरी ने कहा ‘मुख्यमंत्री ने सायन को मेरे दामाद की हैसियत से नहीं बनाया गया है, संघ के कोटा से किशोर कुणाल के बेटे के तौर पर बनाया गया है।’
इसके बाद तो राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। उंगलियां उठने लगी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार RSS के प्रभाव में काम कर रहे हैं। इसकी बानगी है सायन कुणाल को धार्मिक न्यास परिषद का सदस्य बनाना।
RSS की NDA गठन में थी बड़ी भूमिका
वैसे तो नीतीश कुमार और भाजपा गठजोड़ का आधार ही RSS था। तब हुआ यह था कि वर्ष 1995 के चुनाव में नीतीश कुमार अलग पार्टी बना कर लड़े थे। इसके बाबजूद राजद सत्ता में बना रहा। इस हार के बाद भाजपा नेता जनार्दन यादव, मदन जायसवाल समेत कुछ नेता नीतीश कुमार का मन टटोलने उनके पुनाईचक आवास पर पहुंचे।
तब इस बात पर सहमति बनी कि लालू प्रसाद यादव को परास्त करने के लिए गठबंधन बनाना होगा। इस सहमति पर मुहर तब लगी जब तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अश्वनी कुमार और नीतीश कुमार के बीच टेलीफोनिक बात हुई।
RSS का मुंबई अधिवेशन बना था NDA की नींव
जब इस बातचीत का पता गोविंदाचार्य को चला तब वे भाजपा के युवा नेता प्रेम रंजन पटेल को लेकर नीतीश कुमार के पास गए और आगे की रणनीति बनी। इसी दौरान RSS का अधिवेशन मुंबई में था। जॉर्ज फर्नांडिस अस्पताल में भर्ती थे।
तब अधिवेशन के लिए मुंबई गए लालकृष्ण आडवाणी ने जॉर्ज फर्नांडिस से अस्पताल में मिलने का कार्यक्रम बनाया। जब जॉर्ज को पता चला कि आडवाणी उनसे मिलने आ रहे हैं तो उन्होंने पहले से ही जया जेटली और नीतीश कुमार को बुला लिया।
जॉर्ज ने अपनी जगह नीतीश को भेजा
आडवाणी ने जॉर्ज से मिलकर उनको आरएसएस के अधिवेशन में आने का आमंत्रण दिया। जॉर्ज ने असमर्थता जताई और कहा कि समता पार्टी का प्रतिनिधित्व नीतीश कुमार और जया जेटली करेंगे।
नीतीश कुमार और जया जेटली आरएसएस के अधिवेशन में गए। यही NDA गठबंधन का पुख्ता आधार बना और 1996 में लोकसभा का पहला चुनाव मिलकर लड़ा गया।
शाह के कहने पर PK पर उमड़ा नीतीश प्रेम
चुनावी रणनीतिकार से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले प्रशांत किशोर (PK) को भी एक बार नीतीश ने आड़े हाथों लिया था। तब नीतीश ने कहा था कि ‘भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जदयू में शामिल करने के लिए दो बार कहा था।
इसके बाद ही प्रशांत किशोर को जेडीयू में शामिल कराया और बड़ी जिम्मेवारी भी दी। उन्हें जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। आज क्या-क्या बोलता है?’
