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नीतीश और भाजपा: साथ कितनी बार, जुदा कब-कब?

 नीतीश और भाजपा: साथ कितनी बार, जुदा कब-कब?
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बिहार: बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमाई हुई है। विधानसभा चुनावों की तैयारियां तेज़ हो चुकी हैं, और इस बीच राज्य के दो प्रमुख दल—भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू)—फिर से गठबंधन की रणनीति बनाने में जुटे हैं। दोनों दलों की साझेदारी को करीब तीन दशक हो चुके हैं, जिसमें कई बार एक-दूसरे से अलग होकर फिर साथ आने की कहानी शामिल है। इस रिश्ते ने न सिर्फ बिहार की राजनीति को दिशा दी, बल्कि कई बार चुनाव परिणामों को भी अप्रत्याशित मोड़ दिए।

कैसे और कब शुरू हुई भाजपा-जदयू की यह राजनीतिक दोस्ती?

भाजपा और जदयू (तत्कालीन समता पार्टी) की दोस्ती की शुरुआत 1990 के दशक में हुई, जब लालू प्रसाद यादव के बढ़ते जनाधार के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष खड़ा करने की जरूरत महसूस की गई। 1996 में समता पार्टी और भाजपा ने पहली बार मिलकर चुनाव लड़ा। तब से यह साझेदारी बिहार की राजनीति की धुरी बन गई।1997 में जब नीतीश कुमार ने समता पार्टी छोड़कर जदयू का गठन किया, तब भी भाजपा से रिश्ते कायम रहे। 2005 में यह गठबंधन सत्ता में आया और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने।

कभी साथ तो कभी अलग: क्यों टूटा कई बार ये गठबंधन?

भाजपा और जदयू की साझेदारी कई बार दरकी। पहली बड़ी दरार 2013 में आई, जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। नीतीश कुमार ने इसका विरोध करते हुए एनडीए से नाता तोड़ लिया और भाजपा से अलग होकर सरकार बनाई। 2015 में जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा और भाजपा को हराया। लेकिन 2017 में एक बार फिर नीतीश कुमार ने पाला बदला और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। 2022 में एक बार फिर नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ा और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन से हाथ मिला लिया।

अब फिर साथ आने की चर्चा: सीटों पर खींचतान क्यों?

2025 के विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और जदयू फिर से साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही है। 2020 के चुनाव में जदयू ने ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन परिणाम उलटे निकले—भाजपा ने 75 और जदयू ने सिर्फ 43 सीटों पर जीत हासिल की। इस बार जदयू बराबर सीटों की मांग कर रही है।सूत्रों की मानें तो इस बार गठबंधन में शामिल छोटी पार्टियों—हम (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा), लोजपा (पासवान गुट) आदि को भी सीटें देने की योजना है, जिससे भाजपा-जदयू दोनों को संतुलन साधना होगा।

गठबंधन में कौन बड़ा भाई? पुराना विवाद फिर ज़िंदा

भाजपा और जदयू के बीच हमेशा से यह सवाल बना रहा है कि ‘बड़े भाई’ की भूमिका कौन निभाएगा? 2005 और 2010 में जदयू का पलड़ा भारी था, लेकिन 2020 के नतीजों ने यह बदल दिया। भाजपा अब खुद को बिहार में नेतृत्वकारी ताकत मानती है, वहीं नीतीश कुमार का राजनीतिक अनुभव और गठबंधन मैनेजमेंट क्षमता उन्हें अहम खिलाड़ी बनाती है।
आने वाले चुनावों में क्या दिखेगा नया समीकरण?राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार फिर से भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन उनके लिए पहले जैसी स्थिति दोबारा बनना मुश्किल है। सीटों के संतुलन, क्षेत्रीय मुद्दों और युवा मतदाताओं की प्राथमिकताओं को देखते हुए इस बार चुनावी समीकरण काफी पेचीदा हो सकते हैं।

 

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