35 साल पुराने अकोला जातीय हिंसा मामले में 32 दोषियों को 5 साल की सजा

आगरा : आगरा में 1990 में हुए अकोला जातीय हिंसा के मामले में एससी-एसटी विशेष न्यायालय ने 32 दोषियों को 5-5 साल की जेल और 41-41 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। यह फैसला जज पुष्कर उपाध्याय ने शुक्रवार को सुनाया।
क्या हुआ था 1990 में?
21 जून 1990 को पनवारी गांव में भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की शादी थी। जब बारात चढ़ाई जा रही थी, तब जाट समुदाय के दबंगों ने इसका विरोध किया। देखते ही देखते विवाद जातीय हिंसा में बदल गया।
इसके बाद अकोला समेत आसपास के जाट बहुल गांवों में हमले और आगजनी की घटनाएं हुईं। इस हिंसा में कई लोगों की जान गई और कर्फ्यू लगाना पड़ा। उस वक्त प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। घटना के बाद राजीव गांधी और सोनिया गांधी पीड़ितों से मिलने आगरा पहुंचे थे।
मुकदमा और कार्रवाई
इस मामले में 79 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी।
27 आरोपितों की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई।
15 लोगों को कोर्ट ने बरी कर दिया।
35 दोषी पाए गए, जिनमें से 32 को फौरन जेल भेज दिया गया।
1 दोषी ने कोर्ट में बाद में समर्पण किया, जबकि 2 की गिरफ्तारी के लिए गैर-जमानती वारंट जारी किए गए हैं।
एक आरोपी नाबालिग था और एक की फाइल अलग कर दी गई।
फैसले में देरी क्यों हुई?
एडीजीसी हेमंत दीक्षित ने बताया कि इस केस में 31 गवाह थे। गवाहों और आरोपियों के कोर्ट में नियमित रूप से हाजिर न होने और न्यायालय के समय-समय पर बदलते रहने से फैसले में देरी हुई।
पीड़ित परिवार की प्रतिक्रिया
पीड़ित परिवारों ने न्यायालय के फैसले पर संतोष जताया और कहा कि 35 साल बाद मिला न्याय उनके घावों पर मरहम है। वहीं, 95 वर्षीय दोषी देवी सिंह के परिजनों ने हाईकोर्ट में अपील करने की बात कही है।
