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मुर्शिदाबाद हिंसा पर हाई कोर्ट समिति की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

 मुर्शिदाबाद हिंसा पर हाई कोर्ट समिति की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा
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कोलकाता : पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई भीषण हिंसा पर कोलकाता हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय तथ्य खोजी समिति की रिपोर्ट ने राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट में हिंसा को सुनियोजित और एक समुदाय विशेष के विरुद्ध बताया गया है। समिति में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य शामिल थे।

पुलिस पर गंभीर आरोप:

रिपोर्ट के अनुसार पुलिस ने न तो हिंसा को रोकने की कोशिश की, न ही पीड़ितों को सुरक्षा दी।

पुलिस ने पीड़ितों के फोन कॉल्स तक नहीं उठाए

हिंसा के दौरान 113 घरों को आग के हवाले कर दिया गया

महिलाओं के वस्त्र तक जला दिए गए ताकि वे असहाय हो जाएं

पानी की सप्लाई काट दी गई ताकि आग बुझाना भी संभव न हो

SDPO से पिस्तौल छीनी गई और वाहन जलाया गया

हाई कोर्ट समिति की प्रमुख टिप्पणियां:

हिंसा हिंदुओं को लक्षित कर की गई

तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम नेता और स्थानीय पार्षद ने नेतृत्व किया

राज्य प्रशासन का रवैया पूरी तरह निष्क्रिय था

स्थानीय लोग दो दिन तक मदद के लिए पुलिस को फोन करते रहे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई

हृदय विदारक घटनाएं:

जाफराबाद में मूर्ति निर्माता हरगोविंद दास और उनके बेटे चंदन दास की हत्या

दोनों को घर से घसीटकर बाहर ले जाया गया और पीठ पर कुल्हाड़ी से वार कर मार डाला गया

अपराधी तब तक खड़ा रहा जब तक दोनों की मौत नहीं हो गई

राज्यपाल की प्रतिक्रिया:

राज्यपाल ने मुर्शिदाबाद और मालदा को ‘दोहरा खतरा’ बताया और कहा कि हालात बांग्लादेश जैसे होते जा रहे हैं जहां हिंदुओं का रहना मुश्किल हो गया है। उन्होंने केंद्र सरकार को संवैधानिक विकल्पों पर विचार करने का सुझाव दिया था।

राजनीतिक चुप्पी और पक्षपात:

लेख में कहा गया है कि ममता बनर्जी सरकार ने शुरुआत में कोई सहानुभूति नहीं जताई और उल्टा इसे ‘भाजपा की साजिश’ करार दिया। कुछ मंत्री BSF पर भी आरोप लगाते नजर आए। वहीं कथित ‘सेक्युलर’ दल इस हिंसा पर न तो पहले बोले, न अब कोर्ट रिपोर्ट के बाद।

कोलकाता हाई कोर्ट समिति की रिपोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह हिंसा अचानक नहीं बल्कि पूर्व नियोजित थी। पुलिस-प्रशासन की निष्क्रियता और राजनीतिक संरक्षण ने इस त्रासदी को जन्म दिया। अब यह केंद्र और न्यायपालिका के लिए एक संवेदनशील और निर्णायक मोड़ है। यह लेख संवेदनशील जानकारी पर आधारित है, इसलिए पाठकों से अनुरोध है कि वे इसे पढ़ते समय सामाजिक सौहार्द बनाए रखें और किसी भी अफवाह या भ्रामक सूचना से दूर रहें।

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