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काशी में जलती चिताओं के बीच खेली गई होली, विदेशी पर्यटकों ने अद्भुत होली का लिया आनंद

 काशी में जलती चिताओं के बीच खेली गई होली, विदेशी पर्यटकों ने अद्भुत होली का लिया आनंद
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वाराणसी में अकसर त्योहारों का अद्भुत रुप देखने को मिलता है, और अलग तरीके से त्योहार मनाए जाते है, लेकिन इसबार रंगभरी एकादशी से काशी में होली का हुड़दंग शुरू हो गया है,परंपरा के अनुरूप रंग भरी एकादशी के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर बाबा भोलेनाथ के अदृश्य रूप के साथ भक्तों ने जमकर होली खेली. यह होली अपने पूरे विश्व में चर्चित है. इसबार होली की खाश वजह यह रही कि जलची चिताओं के बीच लोगों ने जमकर अबीर-गुलाल और चिता की भस्म से होली खेली, मणिकर्णिका घाट सैकड़ो डमरू की आवाज से गूंज उठा !

वहां कि परंपरा है कि रंगभरी एकादशी के अगले दिन बाबा भोलेनाथ महाश्मशान पर अपने भूत पिशाचगणों के साथ होली खेलने के लिए अदृश्य रूप में पहुंचते हैं, यही वजह है कि महा श्मशाननाथ मंदिर में हर साल पूजा पाठ के साथ साधु, संत और स्थानीय लोग चिता भस्म की होली का आयोजन करते हैं, इस बार भी यह होली आयोजित की गई थी, लेकिन कुछ लोगों कि वजह से होली का लगातार विरोध भी होे रहा है ! लेकिन पुलिस ने शांतिपूर्ण तरीके से पूर्ण कराई गई ! इस आयोजन में काशी की अद्भुत संस्कृति और सभ्यता के साथ काशी की परंपरा के दर्शन हुए !

मणिकर्णिका घाट चिता भस्म होली के आयोजक गुलशन कपूर और विजय पांडेय का कहना है की होली अपने आप में रंगों का त्यौहार है, सभी लोग अपने दुखों को भूलकर इस दिन एक दूसरे से गले मिलते हैं, कोई भी एक दूसरे का दुश्मन नहीं होता है, काशी में इस अद्भुत परंपरा का निर्वहन किया गया. कहा जाता है कि आज भोलेनाथ खुद शमशान पर होली खेलने के लिए पहुंचते हैं, यही वजह है कि हम सब यहां पर होली का हुड़दंग भोलेनाथ के साथ मचाया और जमकर होली खेली है,कई कुंतल अबीर गुलाल के साथ लाखों की भीड़ के बीच जमकर होली का त्यौहार मनाया गया,बड़ी संख्या में देसी-विदेशी पर्यटकों के साथ स्थानीय लोगों ने भी इस अद्भुत होली का आनंद लिया,

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