ईरान-इसराइल तनाव: क्या नेतन्याहू ईरान में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं?

International : पिछले शुक्रवार को इसराइल ने ईरान पर अभूतपूर्व हमला किया। इसके बाद इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने ईरान की जनता को सीधे संबोधित करते हुए उन्हें ‘शैतानी और दमनकारी शासन’ के खिलाफ उठ खड़े होने की अपील की। उन्होंने कहा, “इसराइली सैन्य कार्रवाई आपके लिए आज़ादी का रास्ता साफ कर रही है।” अब, जब ईरान और इसराइल के बीच युद्ध जैसे हालात बन चुके हैं, तो लोग सवाल कर रहे हैं कि इसराइल का असली मकसद क्या है?
क्या इसराइल ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना चाहता है?
या वह अमेरिका-ईरान परमाणु वार्ता को रोकना चाहता है?
या फिर नेतन्याहू वाकई ईरान में सत्ता परिवर्तन की कोशिश कर रहे हैं?
नेतन्याहू लंबे समय से दुनिया को ईरान से खतरे को लेकर आगाह करते आ रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भी ईरान के परमाणु खतरे को लेकर प्रदर्शन किया था। लेकिन उनके कई सैन्य सलाहकार और अमेरिका भी उन्हें कई बार ईरान पर सीधा हमला करने से रोक चुके हैं। हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उन्होंने इस हमले की अनुमति नहीं दी थी। इसराइल ने अपने शुरुआती हमलों में ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों – नतांज़, इस्फ़हान और फोर्दो को निशाना बनाया। अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA) ने बताया कि नतांज़ में एक प्लांट और इस्फ़हान में चार इमारतें नष्ट हुई हैं। ईरान का दावा है कि नुकसान मामूली था, लेकिन इसराइल ने इसे बड़ा नुकसान बताया है। ईरान ने यह भी कहा है कि उसने कभी परमाणु बम बनाने का फैसला नहीं किया।
ईरान का फोर्दो न्यूक्लियर प्लांट एक पहाड़ के अंदर बना है। वहां हमला करना मुश्किल है क्योंकि इसराइल के पास ऐसा बम नहीं है जो इस पहाड़ को भेद सके। हालांकि अमेरिका के पास MOP नाम के ऐसे बम हैं। इसराइल के कुछ सहयोगी देश मानते हैं कि ईरान को हथियार बनाने के काबिल न होने देना जरूरी है, लेकिन परमाणु समझौते को लेकर राय बंटी हुई है। डोनाल्ड ट्रंप शुरुआत में तो इसराइल को ईरान को धमकाने से रोकना चाहते थे, लेकिन बाद में उन्होंने हमलों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि इससे ईरान परमाणु समझौते की तरफ लौट सकता है। हालांकि, फिर उन्होंने कहा कि इसराइल और ईरान के बीच जल्द शांति हो सकती है। यह बयान कई लोगों को उलझन में डाल गया। ओमान में अमेरिका और ईरान के बीच बातचीत की कोशिशें चल रही थीं, लेकिन इसराइली हमलों के बाद ये वार्ताएं अधर में लटक गईं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसराइल के हमलों का मकसद था, बातचीत को पूरी तरह खत्म करना और ईरान की ताकत को कमजोर करना। ईरान में जब शुरुआत में कुछ जनरल मारे गए तो जनता में नाराज़गी नहीं दिखी। लेकिन अब जब आम नागरिक मारे जा रहे हैं, तो गुस्सा बढ़ रहा है। ईरानी लोग किसी ऐसे हमलावर का समर्थन नहीं कर सकते जो उनके घरों पर बम बरसा रहा हो।
नेतन्याहू बार-बार संकेत दे रहे हैं कि हमले जारी रहेंगे। उन्होंने कहा है कि इसराइल “अयातुल्लाह के शासन के हर ठिकाने को निशाना बनाएगा। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनका मकसद सत्ता परिवर्तन है, तो उन्होंने कहा “ऐसा हो सकता है, क्योंकि ईरानी शासन कमजोर है।” कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस पूरे संघर्ष का भविष्य इस पर निर्भर करता है कि क्या अमेरिका इसमें शामिल होता है या नहीं। डेनियल लेवी, जो पहले इसराइली सरकार के सलाहकार रह चुके हैं, कहते हैं, “सिर्फ अमेरिका ही इस लड़ाई को खत्म कर सकता है।”
