बिहार चुनाव: कांग्रेस की पुरानी सीटें जीतने की कोशिश, महागठबंधन की 6 सीटें बनीं चुनौती
बिहार में महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर जटिलता और खींचतान अब स्पष्ट रूप से सामने आने लगी है। इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन की सीटें तय करने की प्रक्रिया में कई तरह की खामियां और मतभेद उजागर हुए हैं। खासतौर पर कांग्रेस की ओर से अपनी 61 सीटों पर मैदान में उतरने के फैसले ने इस गठबंधन के समीकरण को और भी गुत्थमगुत्था बना दिया है। इन सीटों पर आखिरी समय तक सहमति नहीं बन पाने की वजह से छह सीटें ऐसी रहीं, जिन पर गठबंधन की फंस गई थीं। जब इन सीटों पर सहमति बन गई, तो कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जिनमें से कई सीटें कांग्रेस के मजबूत वोट बैंक वाली हैं।
इस बार का सीट बंटवारा महागठबंधन के बीच सामान्य से अलग नजर आ रहा है। जिसमें सबसे ज्यादा 143 सीटें राजद के पास हैं, जो इस गठबंधन का मुख्य आधार हैं। इसके बाद कांग्रेस की बारी आती है। हालांकि, गठबंधन के सहयोगी दल अपने-अपने हितों के कारण कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं। खास बात यह है कि कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां सहयोगी दल अपने ही गठबंधन के दलों के खिलाफ भी चुनाव लड़ रहे हैं। फिर भी, जिन सीटों पर सहमति बनी है, उनमें सबसे अंत में निर्णय लेने वाली सीट वाल्मिकी नगर विधानसभा रही है। इस सीट पर कांग्रेस ने सुरेंद्र प्रसाद कुशवाह को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।
वहीं, वाल्मिकी नगर विधानसभा सीट की खासियत यह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इस सीट पर 1,03,054 वोट मिले थे। जबकि, जद (यू) के पास 55,118 वोट थे। इस सीट पर जेडीयू भी दावेदारी कर रही थी, लेकिन अंततः कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारा। यह सीट कांग्रेस की पुरानी सीट है, जिसने 2015 के चुनाव में भी कांग्रेस को जीत दिलाई थी। इस बार कांग्रेस की नजर इस क्षेत्र के अमौर विधानसभा क्षेत्र पर भी है, जहां पार्टी ने जलील मस्तान को उम्मीदवार बनाया है। अमौर सीट का इतिहास भी दिलचस्प रहा है; यह सीट शुरू से ही ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के पास रही है। 2020 के चुनाव में AIMIM के उम्मीदवार ने इस सीट से 91,459 मत प्राप्त किए थे, जबकि जद (यू) के उम्मीदवार को 41,944 और राकांपा को 31,836 वोट मिले थे। इस क्षेत्र में जनता ने नोटा को भी प्राथमिकता दी थी, जिससे यह स्पष्ट है कि इस सीट पर वोटरों का रुख जटिल रहा है। विजेता ने इस बार 52,515 मतों से जीत हासिल की थी।
इसके अलावा, जेडीयू और आरजेडी के बीच जज्बाती मुकाबला देखने को मिला था, जो बरारी विधानसभा सीट पर भी हुआ। 2020 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जेडीयू विजेता बना था, जबकि उस समय कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारा था। बरारी सीट पर जेडीयू और आरजेडी के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी, लेकिन अंततः जेडीयू का ही पलड़ा भारी रहा।
बिहार की राजनीति में इन सीटों का महत्त्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि इन पर चुनावी मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों की संख्या और वोट प्रतिशत दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। महागठबंधन के नेताओं का मानना है कि सीटों का सही बंटवारा और उम्मीदवारों का चयन उनके चुनावी प्रदर्शन में निर्णायक भूमिका निभाएगा। खासतौर पर ऐसे समय में जब बिहार की जनता जातीय और क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर काफी जागरूक हो चुकी है, तो इन सीटों पर दोनों दलों की रणनीति बहुत अहम हो जाती है।
इस बार के विधानसभा चुनाव में बिहार की राजनीति में नई परिपाटी देखने को मिल रही है, जिसमें पार्टियों के बीच गठबंधन की सीमाएं और उनके बीच मतभेद भी साफ नजर आ रहे हैं। विभिन्न सीटों पर उम्मीदवारों का चयन और टिकट वितरण की प्रक्रिया अभी भी पूरी तरह से अंतिम रूप नहीं ले पाई है। हालांकि, राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। इन सीटों का परिणाम बिहार के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह से बदल सकता है, और आने वाले दिनों में ये सीटें बिहार की राजनीति की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।



