मसूद अजहर की बहनें नए जिहादी प्रोजेक्ट में जुटी: 40 मिनट की रोजाना जिहाद ट्रेनिंग और ऑपरेशन सिंदूर में शौहर गंवा चुकी हैं सक्रिय
आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने अपने नए रणनीतिक कदमों के तहत महिलाओं को जिहाद की ट्रेनिंग और फंडिंग के साधन के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। यह कदम न सिर्फ आतंकवाद की परंपरागत समझ को बदल रहा है, बल्कि महिलाओं को भी टेरर फोर्स का हिस्सा बनाने का गहरा षड्यंत्र है।
जैश-ए-मोहम्मद ने अपने इस अभियान की शुरुआत ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से की है, जिसमें रोजाना 40 मिनट के लाइव लेक्चर के माध्यम से पाकिस्तान की लड़कियों और महिलाओं को जिहाद के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का नाम ‘तुफत अल मुमिनात’ रखा गया है, और इसमें हर लड़की से 500 पाकिस्तानी रुपये की फीस वसूली जा रही है। इन प्रशिक्षण सत्रों की लीडरशिप में जैश-ए-मोहम्मद की प्रमुख महिलाओं की भूमिका है, जिनमें आतंकी मसूद अजहर की बहनों सादिया और समायरा अजहर प्रमुख हैं। इनके अलावा, उमर फारुक की बीवी अफरीरा फारूक भी इस अभियान का हिस्सा हैं।
इन महिलाओं को ऑनलाइन लाइव लेक्चर के जरिए जिहाद की ट्रेनिंग देने का यह अभियान 8 नवंबर से शुरू होने वाला है। जैश-ए-मोहम्मद ने इस योजना के तहत महिलाओं को भर्ती करने के लिए फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया है। इन महिलाओं को जिहाद की शिक्षा, मजहब की जानकारी, और आतंकवादी गतिविधियों के प्रशिक्षण के साथ-साथ फंड इकट्ठा करने का भी काम सौंपा गया है।
सत्यापन के लिए मिले एक्सक्लूसिव दस्तावेज बताते हैं कि जैश-ए-मोहम्मद ने महिलाओं की नियुक्ति के लिए ‘जमात-उल-मुमिनात’ नामक संगठन का गठन किया है, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। इस संगठन के तहत महिलाएं टेरर फोर्स का हिस्सा बन रही हैं, और इनसे फंड जुटाने का काम भी लिया जा रहा है।
मसूद अजहर ने अपने परिवार के सदस्यों को इस अभियान की कमान सौंपी है। उसकी छोटी बहन सादिया अजहर को महिला ब्रिगेड ‘जमात-उल-मुमिनात’ की कमान दी गई है। उसकी पत्नी, अफरीरा फारूक, भी इस अभियान में शामिल है। इन महिलाओं का मकसद आतंकियों के साथ मिलकर जिहाद के लिए युवतियों और महिलाओं को भड़काना है। इन महिलाओं को घर-घर जाकर जिहाद के कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
यह भी ज्ञात है कि जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तान में फंडिंग के लिए जकात का प्रोग्राम चला रहा है। 27 सितंबर को अपने ताजा संबोधन में, जैश के प्रमुख मसूद अजहर ने बहावलपुर में जनता से दान की अपील की। वह इस पैसे का इस्तेमाल अपनी आतंकी गतिविधियों को मजबूत करने और नई भर्ती के लिए कर रहा है।
अभी हाल ही में, 8 अक्टूबर को जैश-ए-मोहम्मद की महिला ब्रिगेड के गठन की घोषणा की गई थी, और 19 अक्टूबर को रावलकोट में ‘दुख्तरिन-ए-इस्लाम’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। इन कार्यक्रमों से स्पष्ट है कि जैश-ए-मोहम्मद अपने आतंकवादी नेटवर्क को मजबूत करने के साथ-साथ महिलाओं को भी फिदायीन हमलों के लिए ट्रेनिंग दे रहा है।
सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान में सामाजिक मानदंड महिलाओं के बाहर अकेले जाने को अनुचित मानते हैं, इसलिए जैश-ए-मोहम्मद अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का सहारा ले रहा है। इससे न सिर्फ महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, बल्कि उन्हें आत्मघाती हमलों के लिए भी तैयार किया जा रहा है। इस तरीके से संगठन आईएसआईएस, हमास और LTTE जैसी विदेशी आतंकी शाखाओं की तर्ज पर अपने फिदायीन दस्ते बनाने का प्रयास कर रहा है।
यह एक बड़ा खतरा है क्योंकि इन महिलाओं से 500 रुपये की फीस वसूल कर फंडिंग की जा रही है, जो पाकिस्तान के इस पाखंड को उजागर करता है। पाकिस्तान स्वयं कहता है कि वह FATF के नियमों का पालन कर रहा है, लेकिन हकीकत में वह जिहाद के नाम पर पैसे इकट्ठा कर रहा है। इस सबके पीछे उसकी मंशा अपने आतंकवादी नेटवर्क को मजबूत करने और भविष्य में आत्मघाती हमलों को अंजाम देने की है।
यह स्थिति भारत जैसे देशों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय है। आतंकवाद का यह नया रूप, जिसमें महिलाओं को भी शामिल किया जा रहा है, विश्व सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। सरकार और खुफिया एजेंसियों को चाहिए कि वे इन गतिविधियों पर पैनी नजर रखें, इन नेटवर्क को तोड़ने और इन साजिशों का पर्दाफाश करने के लिए हर संभव कदम उठाएं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान के इस खेल को उजागर करने की आवश्यकता है, ताकि आतंकवाद के इस नए चेहरे का साफ-सुथरे तरीके से मुकाबला किया जा सके।



