हत्या कानून के दुरुपयोग पर HC ने पुलिस को फटकारा
लखनऊ , उत्तर प्रदेश – इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश में गोहत्या निवारण अधिनियम , 1955 के तहत पुलिस द्वारा मामलों को लापरवाह तरीके से दर्ज करने पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि साफ न्यायिक फैसलों के बावजूद ऐसे मामले क्यों जारी किए जा रहे हैं। अगली सुनवाई 7 नवंबर को होगी।
कोर्ट ने यह आदेश राहुल यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाकर्ता ने प्रतापगढ़ में गोहत्या अधिनियम की धारा 3, 5ए और 8 तथा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम , 1960 की धारा 11 के तहत अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने का आग्रह किया था।
राहुल यादव के अनुसार, उनका ड्राइवर वाहन लेकर वापस नहीं लौटा और बाद में उन्हें पता चला कि वाहन में नौ गोवंशों के साथ जब्ती की गई है। याचिकाकर्ता का कहना था कि इस अपराध में उनकी कोई भूमिका नहीं थी , लेकिन पुलिस उन्हें परेशान कर रही थी।
पीठ ने कहा कि एफआईआर से स्पष्ट है कि पशु जीवित पाए गए थे और उन्हें राज्य से बाहर ले जाने का कोई आरोप नहीं था।
धारा 5ए : केवल अंतरराज्यीय परिवहन पर लागू होती है
धारा 3 और 8 : किसी वध या अपंगता के मामले में ही लागू होती हैं
याचिकाकर्ता न वाहन का चालक था और न ही वाहन में मौजूद था , इसलिए पशु क्रूरता अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होते
खंडपीठ ने कहा कि अदालत में आने वाली याचिकाओं की बड़ी संख्या पर गंभीर चिंता है, जिनमें व्यक्तियों को गोहत्या अधिनियम के तहत झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है, जबकि इनमें किसी प्रकार का वध, चोट या अंतरराज्यीय परिवहन शामिल नहीं है।
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 7 नवंबर को निर्धारित की है।



