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मराठा आरक्षण से महाराष्ट्र में तूफान ,आजाद मैदान खाली करने का नोटिस

 मराठा आरक्षण से महाराष्ट्र में तूफान ,आजाद मैदान खाली करने का नोटिस
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मुंबई :महाराष्ट्र के मुंबई में मराठा समुदाय के ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर चल रहा विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है। प्रदर्शनकारियों के नेतृत्व कर रहे मनोज जरांगे पाटिल ने आजाद मैदान में अपने अनशन के पांचवें दिन प्रवेश किया है, जिसमें बड़ी संख्या में समर्थक मौजूद हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश के चलते मुंबई पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को आजाद मैदान तुरंत खाली करने का नोटिस दिया है। इस आदेश का पालन न करने पर पुलिस ने चेतावनी दी है कि वे उचित कदम उठाएंगे। हालांकि, मनोज जरांगे ने कहा है कि जब तक उनकी सभी मुख्य मांगें पूरी नहीं हो जातीं, वे प्रदर्शन स्थल नहीं छोड़ेंगे।

उन्हें विश्वास है कि न्याय मिलेगा और उनका आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के खिलाफ उनके विरोध प्रदर्शन कानून के दायरे में है और उन्हें उम्मीद है कि अदालत उनके पक्ष में फैसला देगी। प्रदर्शनकारियों ने पहले ही बॉम्बे हाईकोर्ट में इस कदम को चुनौती दी थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दी थी कि उन्होंने शहर को ठप कर दिया है और अनुमति की शर्तों का उल्लंघन किया है। अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह प्रदर्शनकारियों को इस तरह के विरोध के लिए अनुमति न दे और शहर में शांति बनाए रखे।

इसके साथ ही, अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे मनोज जरांगे पाटिल और अन्य प्रदर्शनकारियों को आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं और भोजन उपलब्ध कराएं, खासकर यदि उनकी सेहत बिगड़ती है। साथ ही, पुलिस को शहर के प्रवेश बिंदुओं पर निगरानी और रोकथाम के उपाय करने का भी आदेश दिया गया है।

प्रदर्शनकारी मराठा समुदाय पिछले कई वर्षों से सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10% ओबीसी आरक्षण की अपनी मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में, मनोज जरांगे पाटिल ने भूख हड़ताल शुरू कर दी है, जिसमें वे पानी न पीने की कसम खा चुके हैं। इस आंदोलन के कारण मुंबई के विभिन्न इलाकों में यातायात बाधित हो रहा है, खासकर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के पास आजाद मैदान के प्रवेश द्वार पर।

यह आंदोलन सरकार पर दबाव बनाते हुए, मराठा समुदाय की मुख्य मांगें पूरी करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। प्रशासन और न्यायालय दोनों ही प्रदर्शनकारियों के हितों और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं।

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