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बिहार चुनाव: AIMIM ने आजाद समाज पार्टी और अपनी जनता पार्टी के साथ किया गठबंधन, 64 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना

 बिहार चुनाव: AIMIM ने आजाद समाज पार्टी और अपनी जनता पार्टी के साथ किया गठबंधन, 64 सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना
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बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल गर्म हो चुका है, और जैसे-जैसे चुनावी तारीखें नजदीक आ रही हैं, राजनीतिक समीकरणों में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। इस बार की चुनावी जंग में नई रणनीतियों, गठबंधन और नए समीकरणों का खेल देखने को मिल रहा है, जो प्रदेश की राजनीति में नई उथल-पुथल ला सकता है। खासतौर पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का नया समीकरण इस बार की राजनीति का मुख्य आकर्षण बना हुआ है।

AIMIM का राजनीतिक रणनीति में बदलाव

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 के बिहार चुनाव में सीमांचल क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन किया था, जहां उसकी मौजूदगी और प्रभाव देखने लायक था। उस समय AIMIM ने अपने मजबूत मुस्लिम वोट बैंक का उपयोग करते हुए कई सीटों पर प्रभाव डाला, और अपने प्रदर्शन से यह साबित कर दिया कि उसकी राजनीतिक ताकत अभी भी कायम है। अब, AIMIM ने अपने रणनीतिक कदम को और आगे बढ़ाते हुए, आजाद समाज पार्टी (AAP) और अपनी जनता पार्टी (JPP) के साथ गठबंधन कर लिया है।

यह गठबंधन बिहार की राजनीति में नई प्रयोगवादिता का संकेत है। तीनों दल मिलकर कुल 64 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। इसमें AIMIM अपने हिस्से के 35 उम्मीदवार मैदान में उतारेगी, जबकि आजाद समाज पार्टी 25 और अपनी जनता पार्टी 4 सीटों पर अपने प्रत्याशियों को उतारेगी। इस तरह का गठबंधन न केवल वोटों का विभाजन करने का प्रयास है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक मतदाताओं को आकर्षित करने का भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

गठबंधन का मकसद और राजनीतिक मकसद

मौजूदा राजनीतिक माहौल में यह गठबंधन पारंपरिक सत्ताधारी दलों, जैसे भाजपा और महागठबंधन (जदयू, राजद, कांग्रेस) के साथ सीधे मुकाबले का संकेत है। यह दल विशेष रूप से सामाजिक न्याय, अल्पसंख्यक सशक्तिकरण और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। AIMIM का यह प्रयास उन मतदाताओं को लक्षित कर रहा है जो पारंपरिक राजनीति से किनारा कर चुके हैं या फिर आर्थिक और सामाजिक न्याय की मांग कर रहे हैं।

यह गठबंधन बिहार में तीसरे मोर्चे का भी संकेत दे सकता है, जो मुख्यधारा की राजनीतिक ताकतों को चुनौती देने की दिशा में एक नया विकल्प प्रस्तुत कर सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अभी उम्मीदवारों के नामों की घोषणा बाकी है, और जैसे ही उम्मीदवारों की सूची सामने आएगी, यह तय हो जाएगा कि ये दल किन इलाकों में अपने प्रभाव को मजबूत कर सकते हैं।

चुनावी समीकरण पर प्रभाव

यह गठबंधन बिहार की चुनावी राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत है। यदि यह गठबंधन अपने चुनावी प्रदर्शन को सफल बनाता है, तो यह मुख्यधारा की राजनीति की दिशा को बदल सकता है। खासतौर पर मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के बीच इसकी पकड़ मजबूत हो सकती है।

सामाजिक रूप से संवेदनशील मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, यह गठबंधन सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों को चुनावी एजेंडे में प्रमुखता से लाने का प्रयास कर रहा है। इसका मकसद दलित, मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को एक साथ लाना है, ताकि वे मिलकर सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।

चुनावी रणनीति और आगे का रास्ता

वर्तमान में, इस गठबंधन के उम्मीदवारों की सूची का इंतजार है, जो यह निर्धारित करेगा कि ये दल किन इलाकों में अपने जनाधार को मजबूत कर सकते हैं। बिहार में चुनावी माहौल गरमाने के साथ-साथ, यह गठबंधन अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए प्रचार-प्रसार में भी लगा हुआ है।

सभी दल अपने-अपने क्षेत्रीय और सामाजिक आधार को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। इस दौरान, क्षेत्रीय दल और प्रमुख राजनीतिक दल भी अपने-अपने रणनीतिक कदम उठा रहे हैं। यदि यह गठबंधन अपने उम्मीदवारों की घोषणा के बाद अच्छा प्रदर्शन करता है, तो यह बिहार की राजनीति में एक नई ताकत बनकर उभर सकता है।

बिहार की आगामी विधानसभा चुनावों में इस नए गठबंधन का प्रभाव क्या होगा, यह तो चुनावी परिणाम आने के बाद ही स्पष्ट होगा। लेकिन इतना तय है कि इस गठबंधन ने बिहार की राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया है। सामाजिक न्याय, अल्पसंख्यक सशक्तिकरण और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को केंद्र में रखते हुए, यह गठबंधन मुख्यधारा की राजनीति को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है। आने वाले दिनों में, जब उम्मीदवारों की सूची और प्रचार का दौर खत्म होगा, तो स्पष्ट हो जाएगा कि यह गठबंधन बिहार में किस तरह का समीकरण बना पाएगा और उसकी ताकत कितनी है।बिहार की राजनीति में यह नई ताकत निश्चित रूप से राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगी और चुनाव परिणामों में नई दिशा प्रदान कर सकती है।

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