बिहार चुनाव: सीटों के बंटवारे के लिए NDA का सक्रिय प्रयास, नीतीश से चिराग की पार्टी तक पटना में बैठकें जारी
बिहार चुनाव से पहले एनडीए में सीटों को लेकर चल रही खींचतान अब अपने चरम पर पहुंच चुकी है। पटना में आज कई महत्वपूर्ण बैठकें हो रही हैं, जिनका मकसद सीटांतर की फंसी हुई मसले को सुलझाना है। इस बैठक का आयोजन एनडीए के प्रमुख घटक दलों के नेताओं के बीच हो रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर चिराग पासवान की पार्टी तक शामिल हैं। बिहार चुनाव की घोषणा के बाद से ही सीट बंटवारे का विवाद सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है, और अब यह मामला राजनीतिक बैठकें और बातचीत के जरिए सुलझाने की कोशिश की जा रही है।
पटना में आज होने वाली इन बैठकों का दौर खासतौर पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सबसे पहले, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा-आर) ने अपने नेताओं के साथ एक इमरजेंसी बैठक बुलाई है। यह बैठक पार्टी के प्रदेश कार्यालय में सुबह 10 बजे शुरू होगी, जिसकी अध्यक्षता बिहार चुनाव के लिए पार्टी के प्रभारी अरुण भारती कर रहे हैं। इस बैठक में पार्टी के सह चुनाव प्रभारी (बिहार), प्रदेश अध्यक्ष, सभी प्रदेश उपाध्यक्ष, जिलों के प्रभारी और प्रमुख नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है। बैठक का मुख्य एजेंडा आगामी चुनाव के लिए रणनीति तय करना और सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा करना है। पार्टी नेताओं का मानना है कि सम्मानजनक सीटें मिलना उनकी मुख्य प्राथमिकता है, क्योंकि उन्होंने 2020 के चुनाव में अकेले ही चुनाव लड़ा था और अब भी वह अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं।
वहीं, दूसरी ओर भाजपा और जेडीयू के नेताओं की भी बैठक हो रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने आवास पर जेडीयू के वरिष्ठ नेताओं की एक बैठक बुलाई है, जो सुबह 10 बजे शुरू होगी। इस बैठक का मकसद सीट शेयरिंग के मुद्दे के साथ-साथ उम्मीदवारों के चयन पर भी विचार-विमर्श करना है। नीतीश कुमार का मानना है कि बिहार चुनाव में जेडीयू का वर्चस्व कायम रहना चाहिए और इसके लिए वह अधिक सीटें चाह रहे हैं। जेडीयू की यह मांग है कि उन्हें भाजपा से अधिक सीटें मिलें, ताकि पार्टी का प्रभुत्व मजबूत बना रहे।
बिहार में एनडीए के भीतर सीटों को लेकर यह खींचतान इसलिए भी बड़ी हो गई है क्योंकि सभी घटक दल अपनी-अपनी उम्मीदें और डिमांड लेकर सामने आए हैं। जेडीयू का कहना है कि वह बिहार में बड़े भाई की तरह हैं और उनकी मांग है कि उन्हें अधिक सीटें दी जाएं। वहीं, एलजेपी-आर भी अपनी सम्मानजनक सीटें चाहती है। पार्टी नेताओं का कहना है कि बिहार चुनाव में सम्मानजनक सीटें मिलना उनके लिए जरूरी है, क्योंकि केंद्रीय मंत्रिमंडल में बर्थ से अधिक महत्वपूर्ण है चुनाव में अपने प्रभाव को कायम रखना।
चिराग पासवान की पार्टी, एलजेपी-आर, भी सीटों को लेकर अपनी रणनीति बना रही है। पार्टी के नेता इस बात पर अड़े हैं कि 2020 में जब उन्होंने अकेले चुनाव लड़ा था, तो इस बार भी उन्हें पर्याप्त सीटें मिलनी चाहिए। पार्टी ने यह भी कहा है कि यदि उन्हें उचित सीटें नहीं मिलीं, तो वह अपनी रणनीति बदल सकते हैं। चिराग पासवान ने केंद्रीय मंत्रियों के आवास में भी अभी तक शिफ्ट नहीं किया है, जिससे उनकी सख्त नजर आ रही है। उन्होंने हाल ही में बीजेपी के बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान से भी बातचीत की जिम्मेदारी अरुण भारती को सौंपी है, ताकि सीटों के बंटवारे पर सहमति बन सके।
बता दें कि बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, और अब सत्ताधारी एनडीए के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय करना मुख्य चुनौती बन गया है। अभी तक कोई अंतिम सहमति नहीं बन सकी है, और यह विवाद सियासी गलियारों में गर्माहट ला रहा है। भाजपा और जेडीयू के बीच सीटों को लेकर जो खींचतान चल रही है, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों दल अपने-अपने वर्चस्व को मजबूत करने के लिए प्रयासरत हैं।
यह मामला बिहार की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सीटों का बंटवारा तय करेगा कि किस दल का कितना प्रभाव रहेगा, और चुनावी मैदान में कौन-कौन से प्रत्याशी उतरेंगे। बिहार की जनता की नजरें इन बैठकों पर टिकी हुई हैं, क्योंकि उनके भविष्य का फैसला इन सीटों के बंटवारे पर निर्भर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि एनडीए के घटक दल अपने-अपने दावों पर कायम रहते हैं, तो यह चुनावी मैदान में असंतुलन का कारण बन सकता है।
खास बात यह है कि बिहार में सीटों का फंसा हुआ पेच अब अंततः किसी राजनीतिक समझौते के जरिए ही सुलझने की संभावना है। सभी दल अपनी-अपनी ताकत और रणनीति के साथ इस जंग में लगे हुए हैं। बिहार चुनाव का परिणाम तो आने वाले दिनों में ही स्पष्ट होगा, लेकिन फिलहाल यह साफ हो चुका है कि सीट शेयरिंग का मुद्दा बिहार की सियासत का मुख्य केंद्र बना हुआ है।



