बिहार चुनाव 2025: तेजस्वी का PDA फॉर्मूला और महागठबंधन का नया सीट शेयरिंग खेल
पटना : बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर लगातार मैराथन बैठकें जारी हैं। ये बैठकें कई-कई घंटों तक चल रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन बैठकों में केवल सीटों की हिस्सेदारी नहीं, बल्कि उम्मीदवारों के नाम, जातिगत समीकरण और क्षेत्रीय असर जैसे बारीक पहलुओं पर भी गहन मंथन हो रहा है।
महागठबंधन के हर दल से कहा गया है कि वे अपने-अपने संभावित उम्मीदवारों की सूची पेश करें ताकि उस पर सामूहिक रूप से निर्णय लिया जा सके। बैठकों में यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि पास-पड़ोस की सीटों पर एक ही जाति के उम्मीदवार न हों, जिससे वोटों का बिखराव न हो। किसी भी उम्मीदवार के नाम को अंतिम रूप देने से पहले उस क्षेत्र की जातिगत स्थिति, पिछले चुनावों के नतीजे और स्थानीय राजनीतिक समीकरणों का गहन विश्लेषण किया जा रहा है।
अब मनमर्जी नहीं, सामूहिक फैसला ही अंतिम
गठबंधन के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि इस बार टिकट वितरण में मनमानी की कोई गुंजाइश नहीं होगी। हर नाम पर सामूहिक चर्चा और सर्वसम्मति से मंजूरी अनिवार्य होगी। यदि किसी दल को उम्मीदवार बदलना है, तो उसे बाकी दलों से राय-मशविरा करना होगा।
अति पिछड़ों को प्राथमिकता: राजनीतिक गणित का नया संतुलन
इस बार महागठबंधन का फोकस अति पिछड़ी जातियों (EBC) पर है। पिछली बार इन समुदायों को केवल 10% टिकट मिले थे, जबकि बिहार की आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 36% है। गठबंधन मानता है कि सत्ता की राह अति पिछड़ों की भागीदारी से ही होकर गुजरती है।
राहुल गांधी समेत महागठबंधन के शीर्ष नेताओं ने हाल ही में पटना में अति पिछड़ा सम्मेलन आयोजित किया। इस सम्मेलन में अति पिछड़ा वर्ग के उत्थान और प्रतिनिधित्व को लेकर विशेष घोषणाएं की गईं।
सहरसा सीट का उदाहरण
सूत्रों के अनुसार, सहरसा सीट महागठबंधन के नए घटक दल इंडिया इनक्लूसिव पार्टी (IIP) के नेता आई.पी. गुप्ता को दी जा सकती है। यह सीट जातीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील मानी जाती है। यहां लगभग 35,000 तांती, 65,000 यादव और 55,000 मुस्लिम मतदाता हैं। राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि अगर यादव और मुस्लिम वोट एकजुट रहे तो अति पिछड़ा उम्मीदवार गुप्ता की जीत लगभग तय मानी जा रही है। यही वजह है कि गठबंधन हर सीट पर जातीय संतुलन को केंद्र में रखकर रणनीति बना रहा है।
डेटा एनालिसिस पर आधारित आधुनिक रणनीति
पहले टिकट वितरण में अनुभव या राजनीतिक दबाव अहम होता था, लेकिन अब गठबंधन ने डेटा एनालिसिस आधारित रणनीति अपनाई है। हर सीट की जातिगत जनसंख्या, पिछले चुनावों में मिले वोट प्रतिशत, उम्मीदवार की लोकप्रियता और स्थानीय मुद्दों का विश्लेषण किया जा रहा है — बिल्कुल वैसे ही जैसे खेलों में वीडियो एनालिसिस किया जाता है।
अखिलेश यादव के ‘पीडीए’ फॉर्मूले की झलक
बिहार में इस बार समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के “पीडीए” (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले की झलक भी दिखाई दे रही है। महागठबंधन अब परंपरागत एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के साथ अति पिछड़ों और रविदासी समाज को जोड़कर एक नया सामाजिक गठजोड़ तैयार कर रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह रणनीति सफल रही, तो बिहार की राजनीति का पूरा समीकरण बदल सकता है। हर छोटी जाति अब अपनी भागीदारी चाहती है, और गठबंधन इस बदलाव को समझते हुए नए सामाजिक समीकरण तैयार कर रहा है।



